मेवाड़ राज्य में परंपरागत परिमापन- प्रणाली का प्रचलन था। गहराई मापने के लिए साधारणतः व्यक्ति के अंगुल, घुटने, आदमी की लंबाई, हाथी की ऊँचाई आदि की अनुमानित प्रणाली प्रयोग में लायी जाती थी। इनसे जुड़े प्रचलित सूत्र इस प्रकार थे--
२० वीं सदी में भू- बंदोबस्त में प्रचलित भू- माप के अनुसार १ डोरी का अलग- अलग नाम प्रचलित था। खालसा में १३२ फुट, जागीर में ५२ १/२ फुट तथा माफी में १६२ १/२ फुट का माप प्रचलित था। इसके अतिरिक्त बीघा से इसका संबंध इस प्रकार था--
दूरी मापने की छोटी इकाई "पावण्डा' थी। पावण्डा व अंगुल का अंतर स्पष्ट रुप से ज्ञात नहीं है। सूक्ष्म या बहुमूल्य एवं औषधियों को तोलने के लिए मूँग, रत्ति, माशा व तोले का प्रचलन था। इनका अंकन इस संबंधों के आधार पर किया जाता था--
पक्के तोल का अर्थ ब्रिटिश भारत सरकार का मानक था तथा कच्चा तोल मेवाड़ राज्य की मानक तोल को कहा जाता था। इसके पूर्व कच्चा सेर ५४ रुपया चित्तौड़ी तथा पक्का १०८ रुपये चित्तौड़ी से आंका जाता था।
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