श्रीनाथजी के अष्ट दर्शन
श्रीनाथजी की सेवा बाल भाव से होती है अतः प्रभु को बार-बार भोग लगाया जाता है। बालक पर किसी की दृष्टि न पड़ जाये उनको दर्शन कुछ समयान्तराल पर बीच-बीच में खुलते हैं जिन्हें झांकी भी कहा जाता है। उत्सवों जैसे जन्माष्टमी, नन्दमहोत्सव, अन्नकूट, बसन्तपंचमी, फूलडोल, रामनवमी, अक्षय तृतीया एवं ग्रहणादि में इसे विशेष दर्शन के लिए खोला जाता है। गर्मी के दिनों में बालक को प्रातःकाल सुखद नींद आती है अतः मंगला के दर्शन (पहला दर्शन) देर से होता है। चूंकि सर्दी में बालक जल्दी उठकर कुछ खाना चाहता है अतः उन्हें जल्दी ही मंगल-भोग अरोगाया जाता है। इन दिनों दर्शन प्रातःकाल ४ बजे के लगभग शुरु हो जाता है। रात्रि को प्रगाढ़ निद्रा में सुलाने के लिए अष्टछाप कवियों के पदों का गान होता है। शयनान्तर बीन बजाई जाती है। ग्रीष्मकाल में पंखे झुलाए जाते हैं तथा शीतकाल में उष्णता पहुँचाने की भावना से अंगीठी रखी जाती है। भगवान के अष्ट दर्शनों का उल्लेख इस प्रकार है:- १. मंगला
२. श्रृंगार
३. ग्वाल
४. राजभोग
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