रविवार, 21 जून 2009

मेवाड़: एक परिचय


राजस्थान का मेवाड़ राज्य पराक्रमी गुहिलोंतो। की भूमि रही है, जिनका अपना एक इतिहास है। इनके रीति- रिवाज तथा इतिहास का यह स्वर्णिम खजाना हमें अपने मातृभूमि, धर्म तथा संस्कृति व रक्षा के लिए किये गये गुहिलतों के पराक्रम की याद दिलाता है। स्वाभाविक रुप से यह इस धरती की खास विशेषताओं, लोगों की जीवन पद्धति तथा उनके आर्थिक तथा सामाजिक दशा से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से प्रभावित होता रहा है।

शक्ति व समृद्धि के प्रारंभिक दिनों में इसकी सीमाएँ उत्तर- पूर्व के तरफ बयाना, दक्षिण में रेवाकण्ठ तथा मणिकंठ, पश्चिम में पालनपुर तथा दक्षिण- पश्चिम. में मालवा को छूती थी। महाराणा कुंभ तथा सांगा के समय राज्य की शक्ति उत्कर्ष पर था। लेकिन लगातार होते रहे बाह्य आक्रमणों के कारण राज्य विस्तार क्षेत्र की सीमा बदलती रही। मेवाड़ राज्य आकार में आयताकार है। करीब-करीब अधिकांश क्षेत्र अरावली पवटत की श्रृंखलाओं से ढका है। जिसके पर्वत पृष्ठ तीव्र तथा पठार उथले हैं। बैरत, दुधेश्वर, कमलीघाट आदि इस क्षेत्र की प्रमुख श्रृंखलाएँ हैं तथा जागरा, रनकपुर, गोगुंडा, बोमट, गिरवा तथा मागरा आदि पठारों के उदाहरण हैं। मेवाड़ की सीमा रेखा का कार्य करती रही। खाड़ी नदी जिसका प्रादुर्भाव पश्चिमी पर्वत-श्रृंखलाओं से हुआ है, मेवाड़ तथा अजमेर-मारवाड़ के बीच एक प्राकृतिक सीमारेखा का कार्य करता है। विभिन्न बांध तथा पोखरियाँ अपनी प्राकृतिक बनावट के कारण सुरक्षा प्रदान करती हैं।

मेवाड़ के देशभक्त व समर्पित योद्धा अपनी धरती के लिए लड़ने तथा अपना अधिकार प्राप्त करने के सतत् प्रयास के लिए एक आदर्श उदाहरण के रुप में सदियों तक याद किये जाते रहेंगे।

नोटः । राजस्थानी गुहिलोत शब्द संस्कृत शब्द गोहिला (५६६ ई.) के समतुल्य है। इसका वंश गोहिल्य वंश के रुप में जाना जाता है। गोहिला शब्द का उल्लेख ७१८ ई. के अपराजिता के अभिलेखों में भी मिलता है।




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