राजधानी (उदयपुर) में न्याय व्यवस्था को देखने के लिए सदर दीवानी और सदर फौजदारी अदालतें थीं। जिलों (परगनों) के हाकिमों के दीवानी फैसलों की अपील सदर दीवानी अदालत में होती थी। इन मामलों में जिलों के हाकिमों को ५००० रुपये तक के मुकदमे का दावा करने का अधिकार था, वहीं सदर दीवानी का हाकिम १०००० रुपये तक का दावा सुन सकता था। पुनः फौजदारी मामलों में जिलों के हाकिमों को एक साल तक की कैद तथा ५०० रुपये तक जुर्माना करने का अधिकार था। इन मुकदमों की अपील सदर फौजदारी में होती थी। सदर फौजदारी के हाकिम को तीन साल तक की कैद तथा एक हजार रुपये तक जुर्माना करने का अधिकार था। इसके साथ ही वह १२ बेंत भी लगवा सकता था। दीवान और फौजदारी के सब फैसलों की अपील महद्राजसभा में होती थी, जिसके प्रेसिडेंट स्वयं महाराणा हुआ करते थे। इस सभा के सदस्यों के इजलास को इजलास मामूली कहा जाता था। इस इजलास को मगरा जिले को छोड़कर बाकी जिलों के सभी मुकदमों में १५००० रुपये तक के दीवानी दावे सुनने और फैसला करने तथा फौजदारी मुकदमों में सात वर्ष तक की कैद, ५००० रुपये तक जुर्माना एवं २४ बेंत तक की सजा देने का अधिकार था। संगीन मुकदमे का फैसला करते समय स्वयं महाराणा सभा में उपस्थित रहते थे। उसको इजलास कामिल कहा जाता था। महद्राजसभा के फैसले किये हुए सभी मुकदमों के लिखित फैसले की स्वीकृति के लिए महाराणा के पास जाना होता था। उसकी स्वीकृति हो जाने पर उनकी तामील कराई जाती थी। |
सोमवार, 22 जून 2009
उदयपुर राज्य में न्याय व्यवस्था Udaipur in the state justice system
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