मेवाड़ महिमा के लेखन के लिये सन् 1992 की दीवाली पश्चात् प्रातःकाल के प्रधान सम्पादक सुरेश गोयल और मैं (नारायणलाल शर्मा) उनके घर गये। जब सुरेशजी गोयल ने उनसे कहा `आप मेवाड़ के इतिहास के अथाह भण्डार हैं आपका यह ज्ञान समाज तक पहुंचे इसलिये हम चाहते हैं कि आप हमारे समाचार पत्र में मेवाड़ के इतिहास से सम्बन्धित एक स्थायी स्तम्भ लिखें।' उनके इस निवेदन को डा. शर्मा ने सरलता से स्वीकार किया और 17 जनवरी 1993 से यह लेखन प्रारम्भ होकर जीवन की अन्तिम सांस तक (पूरे पांच वर्ष) निर्बाध गति से चलता रहा। बाधाएं आयी, पत्नी का देहान्त हो गया, स्वयं का स्वास्थ्य खराब हो गया पर इनका लेखन न रूका। आज भी यह स्तम्भ उन्हीं की प्रेरणा से चल रहा है।
वास्तव में डा. गोपीनाथ शर्मा का जीवन इतिहास को समर्पित रहा। उनके जीवन का प्रारम्भ चाहे इतिहास से न रहा हो परन्तु मेवाड़ भमण और उनके जनजीवन को गहराइयों से देखने के पश्चात् मृत्यु पर्यन्त आपका सारा समय इतिहास का वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन में ही बीता। इतिहास के अध्ययन में लीन आप मौन साधक के रूप में रहे। मेवाड़ के इतिहास को नये दृष्टिकोण से लिखने के आपके संकल्प ने कई युवा अध्येताओं को प्रेरणा दी, दिशा दी, और आगे भी वे इसके लिये प्रेरणा देते रहेंगे। `डा. गोपीनाथ शर्मा इतिहास के पर्याय थे' यह कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। (क्रमशः)
मेवाड़ गौरव के अन्तर्गत इतिहासवेत्ता की तरह ही अब उदयपुर के उन शिक्षाविदों की जानकारी दी जा रही है जिनके सत् प्रयास से उदयपुर में उस समय कार्य किया गया जब शिक्षा का अभाव ही था। यहां के लोग बाहर जाकर अध्ययन किया करते थे। इसमें डा. मोहनसिंह मेहता, पं. जनार्दन राय नागर, अर्जुनसिंह भाटी, दयाशंकर श्रोत्रिय आदि के बारे में जानकारी दी जा रही है।
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