श्रीनाथजी के वर्षोत्सव
पुष्टि पुरुषोत्तम लीला विग्रह ब्रजराज श्रीकृष्ण की सेवा में तन्मय होकर आनन्द विभोर होने वाली गोपियों के स्वकीय उत्साह एवं उल्लास द्वारा नित्य नूतन मनोरथों से प्रभु को सानन्द रिझाना तथा नानाविधि से प्रेम-प्रदर्शित करना ही "उत्सव' कहलाता है। दसी गोपीभाव भावित परिपाटी से महाप्रभु श्री वल्लवाचार्यजी, श्री गुसाईजी, श्रीगोपीनाथजी तथा श्री गोकुलनाथजी ने उत्सवों की परम्परा को चलाया। बाद में उनके वंशजों ने उसमें स्वेच्छानुसार समयानुसार नवीनता का पुट देकर उत्सवों का विस्तार किया। वर्ष के बारह वर्षो में महोत्सवों की प्रधानतः चार अधिनायिकाएँ मानी जाती है।
प्रत्येक का सेवाकाल तीन-तीन मास (महीने) का माना जाता है। जब इनमें से एक प्रभु की सेवा में रहती है तो शेष तीन उनका दर्शन तथा कीर्तन करती रहती है। इन अधिनायिकाओं का सेवाकाल तथा उस दौरान आने वाले महोत्सव इस प्रकार है:-
सम्प्रदाय के भावनानुसार महाप्रभु श्रीवल्लभजी, श्रीगुसाई विट्ठलनाथजी तथा श्री दामोदरदास हरसाली क्रमशः श्रीराधा, श्रीचन्द्रावली तथा श्रीललिता के स्वरुप माने जाते हैं। श्रीयमुना जी साक्षात् श्रीजी की सेवा में अहर्निश विद्यमान मानी जाती है। प्रत्येक उत्सव पर प्रभु की देहली मंडित होती है तथा द्वारों को बन्दरवारों से सजाया जाता है। कुछ महत्वपूर्ण उत्सवों जिसमें प्रभु के कुछ खास निश्चित श्रृंगार का प्रावधान है का क्रमानुसार उल्लेख इस प्रकार है। श्रावण कृष्णा-१
श्रावण कृष्ण ८
श्रावण कृष्णा ९
श्रावण कृष्णा ३०
श्रावण शुक्ल ३
श्रावण शुक्ला ५ (नाग पंचमी)
विशेषता:- आज संध्या डोलतिवारी में मोती का हिंडौला लगता है। श्रावण शुक्ला ७ (बगीचा)
विशेषता:- आज के दिन डोलतिबारी में चौबीस केलों के खंभों का कुंज बनता है। केलों के मध्य में भगवान् को झूला झूलाया जाता है तथा विशेष भोग आते हैं। श्रावण शुक्ला ९(वर्तमान ति. श्रीगोविन्दलालजी कृत सप्तस्वरुपोत्सव)
विशेषता:- इस दिन सातों घरों के स्वरुप एक होकर छप्पन भोग अरोगते थे। श्रावण शुक्ला ११ (पवित्रा एकादशी)
विशेषता:- आज ही पुष्टि प्राकट्य का दिवस है। श्रीमहाप्रभुजी को श्रीनाथजी ने आज ही दर्शन दिये थे। श्री गोविन्दलाल जी ने सातों स्वरुपों को श्रीजी के समीप पधरा कर एक साथ ही सातों स्वरुपों को पवित्रा धराये थे। श्रावण शुक्ला १३ (संत चतुरानागा का उत्सव)
विशेषता:- आज ही के दिन "टोड के घने' में श्रीनाथजी भैंसे पर बैठकर संत चतुरानागा के पास पधारे थे। श्रावण शुक्ला १५ (रक्षाबंधन)
विशेषता:- आज मुहुर्त के अनुसार भगवान को राखी पहनाई जाती है। आज से जन्माष्टमी तक राजभोग में विविध खिलौनों से भगवान को खिलाया जाता है। इसी दिन से गीतों वाली बधाई का भी आरंभ हो जाता है। भाद्रपद कृष्णा पंचमी:-
विशेषता :- ये श्रृंगार तिलकायत के होते हैं। आज गोपीवल्लभ अथवा राजभोग पश्चात् जन्माष्टमी को पहनाये जाने वाले वस्र रंगे जाते हैं। भाद्रपद कृष्णा ६
भाद्रपद कृष्णा ७ (छठी का उत्सव)
विशेषता :- छठी पूजन के भाव से शयन में विशेष सामग्री के भोग आते हैं। छठी का मंडना आरंभ हो जाता है। भाद्रपद कृष्णा ८ (जन्माष्टमी)
विशेषता :- इस दिन चार बजे प्रातः खुलती है। सारी सजावट बिल्कुल नई आती है। महाप्रभुजी के खिलौने श्रीजी के सम्मुख धरे जाते हैं। सायंकाल ७ बजे उत्थापन खुलते हैं। नित्य सेवोपरांत आज शयन के विशेष दर्शन होते हैं। जिसमें भगवान् विविध खिलौनों से खेलते रहते हैं। इस पवित्र रात्रि में भगवान पूरा जागरण करते हैं। भाद्रपद कृष्णा ९ (नंद महोत्सव)
विशेषता :- इस दिन श्रीनवनीतप्रिय श्रीजी में पधार कर पलना में बिराज जाते हैं। आरती पश्चात् प्रभु पर राई, नमक उतारा जाता है। भाद्रपद कृष्णा ११ से लेकर ३० तक श्रीमद्भागवतानुसार निपट बालबीला के पाँच श्लोकों के आधार पर पाँच श्रृँगार होते हैं। बधनखा सबमें धराया जाता है।
भाद्रपद शुक्ला १
विशेषता :- आज से लेकर राधाष्टमी तक अष्ट सहचरियों में से प्रत्येक के उत्सव आरंभ हो जाते हैं। भाद्रपद शुक्ला ४.
विशेषता :- श्रीजी के सम्मुख आज डंका धराये जाते हैं। भाद्रपद शुक्ला ५ (श्रीचन्द्रावली का उत्सव)
विशेषता :- आज श्रीचंद्रावली का उत्सव होता है। ये ठाकुर चंद्रभान की पुत्री तथा श्रीकृष्ण की यूथनायिकाओं में गिनी जाती हैं। तथा कामवन वाले श्रीमदनमोहनजी के समीप ही बिराजती है। भाद्रपद शुक्ला ६ (श्रीललिता का उत्सव)
विशेषता :- "ऊँचे गाँव' की निवासिनी तथा ठाकुर श्रीललितभानु की पुत्री श्री ललिता भी यूथनायिकाओं में से एक है। आज के ही दिन प्रथम तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी का उत्सव होता है। भाद्रपद शुक्ला ८ (राधाष्टमी)
विशेषता :- भोग संध्या आरती में ढाढ़ी ढाढिन श्रीनाथजी के सम्मुख नृत्य करते हैं। भाद्रपद शुक्ला ११ (दान एकादशी)
विशेषता :- आज से बीस दिन तक अर्थात् आश्विन कृष्णा अमावस्या तक भागवान् दान अरोगते हैं। भाद्रपद शुक्ला १२ (वामन द्वादशी)
विशेषता :- राजभोग के दर्शन में वामन जन्म के उपलक्ष में श्रीबालकृष्णलाल का पंचामृत होता है। भाद्रपद शूक्ला १५
विशेषता :- आज से लेकर अमावस्या तक हथियापोल के द्वार पर केले के पत्तों को कलात्मक काटकर ब्रजमण्डल की चौरासी कोस की यात्रा के विविध दृश्य साँझी के रुप में मंडित करते हैं। आश्विन कृष्णा ५ (महादान-श्रीहरिराय महाप्रभु का उत्सव)
विशेषता :- प्रातःकाल गोपीवल्लभ में महादान होता है जिसमें दूधघर की अनेक सामग्रियाँ अरोगाई जाती हैं। सायंकाल मणिकोठे में विविध फूलों की कलात्मक ढ्ँग से साँझी बनाई जाती है और विशेष भोग आता है। आश्विन कृष्णा ११ (महादान)
आश्विन कृष्णा १२ (श्रीगोपीनाथजी का उत्सव)
विशेषता :- यह महाप्रभुजी के प्रथम लालजी का उत्सव है। आश्विन कृष्णा १३ (श्रीबालकृष्णजी का उत्सव)
विशेषता: - श्रीबालकृष्णजी श्रीगुसाईजी के चतुर्थ लालजी थे। आश्विन कृष्णा अमावस्या (कोरट की आरती)
विशेषता :- संध्या कमल चौक में हथिया-पोल के आगे कोट मंडित होता है जिसमें द्वारिका के महल, विविध खिलौने और रंगीन कागज पर कलात्मक ढंग से हाथी घोड़े आदि बनवाये जाते हैं। आश्विन शुक्ला १ (नवरात्रारंभ)
विशेषता :- आज के दिन श्रीजी में यवांकुर रोपण होता है तथा आज से लेकर नौ दिन तक नव विलास होते हैं। आश्विन शुक्ला ५
विशेषता :- "करखा' आरंभ। आश्विन शुक्ला ८
विशेषता :- श्रीमद्भागवतान्तर्गत रास पंचाध्यायी के प्रथम अध्याय का आज श्रृँगार होता है। तथा "वेणुनाद' के पद गाये जाते हैं। उपर्युक्त पिछवाई में चौसठ गोस्वामी बालक सखीभाव से चित्रित है। आश्विन शुक्ला १० (दशहरा)
विशेषता :- आज से सवालक्ष तुलसी मंगला उपरांत प्रतिदिन श्रीजी के चरणों में धराई जाती हैं। यह सेवा कार्तिक शुक्ला १० तक चलती है। राजभोग में श्रीजी के सम्मुख काष्ठनिर्मित सुसज्जित गाएँ रक्खी जाती है। आज के दिन से ही अन्नकूट की सामग्री का शुभारंभ हो जाता है। आश्विन शुक्ला ११-१४ पय्र्यत
विशेषता :- श्रीमद्भागवतान्तर्गत "रास पंचाध्यायी' के दो अध्याय का श्रृँगार उक्त दोनों दिन होता है और महारास के पद आज से प्रतिपदा तक गाये जाते हैं। आश्विन शुक्ला १५ (महारास)
विशेषता :- आज संध्या में शयन के दर्शन नहीं होकर डोलतिबारी, मणिकोठा, और रतनचौक में बिछात होती है। सामग्री एवं साज आदि सब सफेद होते हैं। कार्तिक कृष्णा १
विशेषता :- शयन के दर्शनों में भगवान् को तारामंडित सफेद उपरणा तथा पाग धराई जाती है। आज भी शरद् का ही उत्सव माना जाता है। कार्तिक कृष्णा २
नोटः - "इन्हीं दिनों में कार्तिक कृष्णा १० के पहिले मुकुट काछनी का श्रृँगार, टिपारे का श्रृँगार ओर अभ्यंग का श्रृँगार पदों के भावानुसार होता है तथा परचारगी में श्रृँगार कार्तिक कृष्णा दशमी से लेकर चतुर्दशी तक हेर फेर से होते रहते हैं। मुहूर्त से अन्नकूट में बनने वाली सखरी रसोई हेतु भट्ठी की पूजा भी होती है।' कार्तिक कृष्णा ९ (दीपावली का श्रृँगार)
विशेषता :- आज के दिन शयन में काच की हटड़ी और डोलतिबारी तथा मणिकोठे में रोशनी झाड़ फानूस आदि सब प्रकाशित रहते हैं। यह श्रृँगार भी परचारगी माना जाता है। कार्तिक कृष्णा १०
विशेषता :- आज ही से तिलकायत के श्रृँगार आरंभ हो जाते हैं। आज से लेकर भाई दूज तक अष्ट सहचरी के भाव से आठ श्रृँगार होते हैं। आज के दिन ही नौबत की बधाई बैठ जाती है। कार्तिक कृष्णा ११
विशेषता :- आज से बड़ी सेवा होती है। कार्तिक कृष्णा १२
कार्तिक कृष्णा १३ (धनतेरस)
विशेषता :- आज के दिन सब साज जड़ाउ रहता है। कार्तिक कृष्णा १४ (रुप चतुर्दशी)
कार्तिक कृष्णा अमावस्या (दीपमालिका)
आज उत्थापन, भोग, संध्या आरती तथा शयन अन्दर होते हैं। डोलतिवारी में सजावट होकर सात स्वरुपों की भावना पधारती है। प्रातः १०.३० - ११.०० बजे के बीच श्रीजी की नाथूवास स्थित गउशाला से गाए श्रृँगार करके नाथद्वारा नगर में प्रवेश करती है तथा श्रीजी की पायगा में विश्राम करती है। सायंकाल (लगभग ४ बजे) "ग्वाल' सेवक अनोखे पाग धारण किये हीरी गाते हुए श्रीजी की परिक्रमा करते हैं। संध्या आरती के बाद गऊमाताएँ गोवर्धन-पूजा चौक में पधारती है। दूध का भोग आता है। नंदरामजी के गोवंश की गाय की तिलक करने के बाद "कान्ह जगाई' होती है। काँच की किरच वाली हटड़ी में श्रीनवनीत प्रभु विराजते हैं। इनका दर्शन सर्वसाधारण के लिए खुल जाता है। कार्तिक शुक्ला १ (अन्नकूट)
विशेषता :- यह नगर का सबसे बड़ा उत्सव है। आज श्रीजी के केवल एक ही दर्शन "मंगला' के होते है। बाकी के सब दर्शन अन्दर होकर सेवा चालू रहती है। डोलतिवारी में घास का "मिढ़ा' (चाँवल रखने का घास निर्मित कूआ) बनता है जिस पर अन्नकूट के भात का ढेर किया जाता है। राजभोग पश्चात् श्री विट्ठलनाथजी श्रीजी में अन्नकूट अरोगने पधारते हैं। प्राचीन समय में आज के दिन इस समय श्री द्वारिकानाथ जी, काँकरोली से पधारते थे। श्रीदाउजी महाराज के सेवा काल में आज ही के दिन सातों स्वरुपों ने नाथद्वारे पधार कर श्रीजी के साथ अन्नकूट अरोगा था। इसके बाद गउमाताएँ पूर्व दिवस के ही समान धूम-धाम से क्रीड़ा करती हुई मंदिर मार्ग को अपनी रुनझुन से निनादित करती हुई श्रीमंदिर के गोवर्धन पूजा चौक में पधारती हैं। श्रीनवनीतलाल को पधराए जाने से पूर्व श्रीनाथजी से आज्ञा लेकर श्रीनवनीत प्रिय को लेने जाते हैं। तदनन्तर श्री नवनीतप्रिय भी पूर्ववत् पधार कर सूरजपोल के पावन सोपानों पर बिराज जाते हैं। इसके बाद दूध का भोग आता है और गोवर्धन पूजा शुरु हो जाती है। मानसी गंगा के जल, दूध, चंदन, कूमकुम से करीब पौन घंटे तक गोवर्धन-पूजा चलती है। भोग के पश्चात् आरती की जाती है। इसके बाद श्रीनाथजी के दूध घर एवं गउशाला के प्रधान गवालों तथा सातों घरों के ग्वालों को तिलकायत श्री "टौना' बाँध कर प्रसाद देते हैं। इसके पश्चात् श्रीनवनीत प्रिय धोली पटिया से होकर श्रीनाथ जी के पास अन्नकूट अरोगने पधार जाते है। इधर गोमय के वने गोवर्धन पर गौएँ चढ़ाई जाती हैं। तदनन्तर गाऐं अपने वासस्थान पर पहुंच जाती हैं वहाँ पर श्रीजी की तरु से गौओं को सरस स्वादिष्ट थूली (गेहूँ का दलिया गुड़ युक्त) खिलाई जाती है। इसके तुरन्त बाद सभी गाएँ नगर के प्राचीन मार्ग गुर्जरपुरे से नाथूवास स्थित गउशाला मे आ जाती हैं। उधर श्रीजी में अन्नकूट का भोग आ जाता है। भोग धरने के पश्चात् लोग तिलकायत से अनुगत श्रीजी की बड़ी परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा के पश्चात् श्रीजी का भोग सरा दिया जाता है। इसके बाद दर्शन खुल जाते हैं। इन दर्शनों में एक-एक घड़ी के बाद ९ आरती होती है। चौथी आरती के बाद भील चाँवल लूटना आरंभ कर देते हैं। पाँचवीं आरती के बाद श्रीविट्ठलेशरायजी अपने घर पधार जाते हैं। नवमीं आरती के बाद श्रीनवनीतलालजी बगीचे के रास्ते अपने घर चले जाते हैं। अन्नकूट डोलतिवारी के बीच के दरवाजे में "मिढ़ा' पर डेढ़ सौ मन भात का ढेर लगाकर अन्न का कूट (शिखर) बनाया जाता है। उसके ऊपर चारों दिशाओं में मिष्टान्न के चार बढ़े गूंजे बीच में मिष्टान्न का एक चक्र गाड़ दिया जाता है। शिखर को तुलसी की माला धराई जाती है। इसके चारों ओर सखड़ी रसोई के विविध पकवान रक्खे जाते हैं। इन पकवानों से सारा रतनचौक और डोल तिवारी पूरे भर जाते हैं। इसके अलावा दूध घर तथा बालभोग की सामग्री निज मंदिर, मणिकोठा और छठी वाले कोठे में चार-चार टोकरे में एक दूसरे के ऊपर रक्खी जाती है। भोग सरने के बाद दर्शन में श्रीजी के सम्मुख निज मंदिर में आठ-आठ टोकरे की जोड़ रखी रहती है परन्तु इन्हें श्रीविट्ठलेशरायजी के पधारने के पूर्व ही हटा ली जाती है।' आज से गोपाष्टमी तक "इन्द्रभान भंग के पद' होते हैं। कार्तिक शुक्ला २ (यम द्वितीया)
विशेषता :- आज राजभोग में श्रीजी को दूज का तिलक होता है और उसके तुरंत बाद भोग अरोगाया जाता है। कार्तिक शुक्ला ५ (पंचमी)
विशेषता :- इस दिन उक्त पिछवाई सात दिन तक गोवर्धन गिरि को उठाये रखने के भाव से आती है। इसमें नंद, यशोदा, गोपी, गवाल सभी श्रीकृष्ण को गोवर्धन उठाने में लकड़ी का सहारा लगाकर सहयोग कर रहे होते हैं और ऊपर आकाश मेघमय हो रहा होता है। कार्तिक शुक्ला ८ (गोपाष्टमी)
विशेषता :- आज के दिन सर्वप्रथम भगवान कृष्ण गाएँ चराने वन में पधारे थे। इसी से आज गोचारण के पद होते हैं तथा नाथूवास गउशाला में भगवान की तरफ से गायों को थूली खिलाई जाती है। कार्तिक शुक्ला ९ (अक्षय नवमी)
विशेषता :- संध्या भोग आरती में श्रीजी को तुलसी की माला धराई जाती है। यदि कार्तिक कृष्णा अमावस्या को ग्रहण आ जाय तो श्रीजी में आज के दिन अन्नकूट का उत्सव होता है। नियमानूसार आज ही गोवर्धन पूजा होकर गाएँ गोवर्धन पर चढ़ाई जाती है। अननकूट का भोग आता है तथा रात्रि को भीज भात लूटते हैं। इस दिन भगवान को पेड़े की विशेष सामग्री अरोगाई जाती है। घस्यार में आज के दिन अन्नकूट होता है। कार्तिक शुक्ला ११ (प्रबोधिनी)
विशेषता :- आज मुहुर्त के अनुसार डोलतिवारी में ईख का मण्डप स्थापन होकर श्रीवालकृष्णजी उसमें बिराजते हैं। यहां उनका पंचामृत होता है। शीतकाल की सभी साकग्रियाँ अर्पित की जाती है। कार्तिक शुक्ला १२ (श्री गिरधरजी का उत्सव)
विशेषता :- गुसाईजी श्रीविट्ठलनाथ जी के प्रथम पुत्र जिन्होने श्रीनाथजी को सतघरा (मथुरा) में पधराकर सर्वस्र अपंण कर दिया था उन्हीं के आभूषणों का प्राचीन चौखटा बनाया गया जो सदा उत्सवों में श्रीजी को अंगीकार कराया जाता है। मार्गशीर्ष कृष्णा ४ (ति. श्रीदाउजी महाराज कृत ६ स्वरुपों का उत्सव)
विशेषता :- आज के दिन दुहरे मानोरथकर्ता श्रीदाउजी महाराज ने श्रीजी में छप्पन भोग किया था जिसमें श्रीमथुरानाथजी, श्रीविट्ठलनाथजी, श्रीद्वारिकानाथजी, श्रीगोकुलनाथजी, श्रीगोकुलचंद्रमाजी, श्रीमुकुंदरायजी, श्री मदनमोहनजी तथा श्रीनटवर जी आदि स्वरुप इकट्ठे हुए थे। टिप्पणी :- मार्गशीर्ष और पौष मास में मंगल भोग होते हैं। तथा द्वादशी को चौकी होती है। इनके श्रृँगार पृथक्-पृथक् होते हैं। सेवा में शीघ्रता रक्खी जाती है। इसी मास से श्रीजी के हरी, श्याम, चंदाउगाल, लाल, केसरी, सफेद जरी की, बैंगनी, गुलेनार, गुलाबी, पीली सुनहरी जरी तथा पिरौजी आदि की घटाएँ शुरु हो जाती है। इसके अलावा पद के आधार पर पंचरंग पाग, पाछिली रात का श्रृँगार, पीताम्बर का चोलना, सोने की पाग, हीरा की पाग आदि के श्रृँगार श्रीजी को होते रहते हैं। मार्गशीर्ष कृष्णा ८ (श्री गोविन्दजी का उत्सव)
विशेषता :- ये गोविन्दजी भगवान श्रीविट्ठलेशराय के प्रधान आचार्य एवं श्री गुसाईंजी के दूसरे पुत्र थे। मार्गशीर्ष १३ (श्रीघनश्यामजी का उत्सव)
विशेषता :- ये गुसाईंजी के सप्तम पुत्र और कामवनस्थ श्रीमदनमोहनजी के प्रधान आचार्य थे। मार्गशीर्ष शुक्ला ७ (श्रीगोकुलनाथजी का उत्सव)
विशेषता :- ये गुसाईंजी के चतुर्थलालजी थे। इन्होने ही कुलही और मौजे वनवाकर श्रीजी को अंगीकार करवाए थे। हिन्दुओं के तिलक और कंठी की रक्षा की तथा पुष्टिधर्म का प्रचार कश्मीर तक किया। इनके व्यक्तित्व से भारत सम्राट जहाँगीर भी प्रभावित हो गया था। हिन्दी साहित्य में गद्य के आद्याचार्य ये ही माने जाते हैं। आज की तिथि से भगवान के शयन भीतर होते हैं। मार्गशीर्ष शुक्ला ८ (ति. श्रीगोवर्धनेशजी कृत सप्तस्वरुपोत्सव)
विशेषता :- श्रीगोवर्धनेशजी ने सर्वप्रथम नाथद्वारा में सप्तस्वरुपों को एकत्रित किया था। मार्गशीर्ष शुक्ला १५ (छप्पन भोग)
विशेषता :- आज मंगला दर्शन के पश्चात् केवल राजभोग के ही दर्शन खुलते हैं। गोपी वल्लभ में छप्पन भोग का भोग आता है। पौष कृष्णा १ (लालबाबा श्रीदाउजी का जन्म दिवस)
विशेषता :- आज राजभोग में काच की किरच का बंगला श्रीजी को धराया जाता है। पौष कृष्णा ७ (श्री कल्याणरायजी का उत्सव)
विशेषता -' कल्याणरायजी श्री विट्ठलेश-प्रभु के घराने के आचार्य तथा महाप्रभु श्री हरिरायजी के पूज्य पिता थे। इनके जन्म के उपलक्ष्य पर उनके पिता श्री गोविन्दजी ने श्रीनाथ जी को अंगुठी भेंट की थी। उस अंगूठी का पन्ना आज भी श्रीनाथजी अपने मस्तक पर धारण करते हैं और अंगूठी आज के दिन श्री विट्ठलेश प्रभु को धराई जाती है जिसके दर्शन राजभोग में किये जा सकते हैं। पौष कृष्णा ९ (री गुसाईंजी का उत्सव) श्रृँगार :- केसरी साटन के सादा वस्र, चाकदार बागा, श्रीमस्तक पर केसरी कुल्ही, मोर पंख का जोड़। जन्माष्टमी जैसा श्रृँगार। विशेषता :- आज के दिन गुसाईं जी श्रीविट्ठलनाथजी का प्राकट्य हुआ था। इस दिन भगवान् विशेषकर जलेबी अरोगते हैं, इस कारण इसे "जलेबी उत्सव' के नाम भी पुकारा जाता है। संक्रान्ति:-
विशेषता :- आज राजभोग दर्शनान्तर डोलतिवारी में सुखपाल आता है और उसमें गेंद रक्खी जाती है। इसमें प्रधान भावना यह है कि भगवान राजभोग करते ही खेलने पधारते हैं। माघ शुक्ला ५ (बसन्त पंचमी)
विशेषता :- इस दिन से शयन के दर्शन खुलते हैं। मध्याह्म राजभोग दर्शनानन्तर एक विशेष दर्शन और होते हैं। श्रीजी के सम्मुख वसंत का कलश स्थापित किया जाता है। आज से ही श्रीजी गुलाल, अबीर, चंदन तथा चोबा से खेलना आरंभ कर देते हैं। यह क्रम डोलोत्सव तक चलता रहता है। आज से जयदेव की बसंत वाली अष्टपदी प्रारंभ हो जाती है। माघ शुक्ला १५ (होली-डांडा रोपण)
विशेषता :- मुहूर्त के अनुसार होली मगरे पर आज के दिन होली का डंडा रोपा जाता है जिसमें आचार्यश्री की बैठक से कीर्तन समाज गाता बजाता खर्च भंडारी सहित वहां पहुँचता है। डंडारोपण के पूर्व डंडे की मन्त्रोक्त विधि सक पूजा की जाती है। यहां श्रीनाथजी में "धमार' का आरंभ हो जाता है। होली डंडे को मदनघ्वज भी माना जाता है और मास भर इसी के नीचे मय्र्यादातीत धूमधाम होती रहती है। फाल्गुन कृष्णा ७ (श्रीनाथजी का पाटोत्सव)
विशेषता :- आज के दिन ही मथुरा (सतधरा) में श्रीनाथजी गोवर्धन से पधारे थे। इसी दिन भगवान् नाथद्वारा आकर पाट पर बिराजे थे। इसके बाद उदयपुर और घस्यार जाकर पुनः इसी दिन पाट पर बिराजमान हुए थे। आज के दिन से स्वांग आरंभ हो जाते हैं। शयन में ये स्वांग श्रीजी के आगे नृत्य करते हैं। आज से ही राजभोग दर्शन के समय रतन चौक में ब्रजवासी ढोल और चंग बजा बजाकर रसिया गाते हैं तथा एक ब्रजवासी "ग्वाल' बनकर भगवान के आगे नाचता है। फाल्गुन शुक्ला ७ (लालबाबा श्रीइंद्रदमनजी का जन्मदिवस)
विशेषता :- आज राजभोग सरने के पश्चात् मणि कोठे में गुलाल कुँड आता है जिसके चारों ओर वृक्षावलियाँ होती है और उनके बीच ब्रजभक्त खड़े रहते हैं। आज से गुलाल द्वारा सारी पिछवाई लाल करके ऊपर अबीर की सफेद चिड़िया अंकित की जाती है। ब्रजभक्तों द्वारा बनाई गलियाँ भी भगवान् को आज से ही सुनाना आरंभ होता है। फाल्गुन शुक्ला ११ (कुँज-एकादशी)
विशेषता :- आज राजभोग सरने के पश्चात् निज मंदिर में कुँज बनता है। श्रीनवनीत-प्रभु अपने घर से पधारकर श्रीजी के गोद में बिराजते हैं। राजभोग आरती के बाद श्रीनवनीत प्रिय पुनः अपने घर पधार जाते हैं। संध्या आरती में श्रीजी को ठाड़ वेत्र धराते हैं तथा वेणु कटि में खोंसा जाता है। फाल्गुन शुक्ला १५ (होली)
विशेषता :- आज शयन में श्रीजी की गुलाल से दाढ़ी रंगी जाती है। प्रभु को ठाड़ा वेत्र धराते हैं। बडूयला की माला की भावना से भगवान को आज सोने के ताबीज की माला पहनाई जाती है। शयन में भरपुर गुलाल उड़ता है। मुहूर्त के अनुसार कीर्तन समाज होली-मगरा पहुँच कर होलिकादाह करता है। चैत्र कृष्णा १ (डोलोत्सव)
विशेषता :- आज के दिन डोलतिवारी में ध्रुवबारी के नीचे डोल बंधता है जिसे आम्रमौर, मालती एवं विविध पुष्प पल्लवों से सजाया जाता है। राजभोग सरने के पश्चात् श्रीनवनीत-प्रभु श्रीनाथजी में पधारते हैं तथा डोल का अधिवासन होकर भगवान उसमें बिराजते हैं। डोल ही में भोग आता है। भारी खेल होता है और दर्शन खुल जाते हैं। इसी तरह चार भोग आते हैं और चार दर्शन खुलते हैं। दर्शनों में खूब गुलाल उड़ाया जाता है। अंतिम दर्शन में श्री नवनीतप्रिय श्रीजी की गोदी में पधारते हैं। मुखियाजी गोस्वामी बालकों को गुलालादि से खिलाते हैं। इसके बाद तिलकायतश्री सेवकों-मुखिया, भीतरिया तथा कीर्तनियाँओं को खिलाते हैं। फिर श्रीनवनीत प्रिय अपने घर पधार जाते हैं। आज लाल खीनखाप के दुग्गल पर पुष्पों (चैत्र गुलाब) की माला धराई जाती है इस प्रकार भोग के दर्शनों में श्रीजी की अनुपमेय छटा अत्यंत ही चित्ताकर्षक होती है। चैत्र कृष्णा २ (द्वितीया पाट)
विशेषता :- आज चैत्र गुलाब की फूलमंडनी बनती है और श्रीनाथजी राजभोग दर्शन में उसमें बिराजते हैं। चैत्र कृष्णा ५ (रंग पंचमी)
विशेषता :- आज कई स्थानों में डोल झूलते हैं। पहले आज के दिन फाग की शोभायात्रा भी निकलती थी। चैत्र शुक्ला १ (नव-वर्ष)
विशेषता :- श्रृँगार में नये वर्ष का पंचाग भगवान् को सुनाया जाता है। आज राजभोग में फूलों की दुहेरी मंडनी (शाहीवान वाली) में श्रीजी बिराजते हैं। चैत्र शूक्ला ३ (गणगौर)
विशेषता: - आज से लेकर तीन दिन तक राजस्थान में "गणगौर' का मेला लगता है अतः यहाँ भी मनोरथ होता है तथा चूंदड़ी के भाव के पद होते हैं। चैत्र शूक्ला ५ (गुलाबी गणगौर)
विशेषता: - आज के दिन भगवान गुलाब का सीरा (हलुआ) तथा गुलाब की कतली अरोगते हैं। रात्रि को गुलाब की शय्या बिछती है। कभी-कभी मनोरथ होने पर केवल गुलाब की फूलमंडनी भी होती है। चैत्र शुक्ला ६ (श्रीयदुनाथजी का उत्सव)
विशेषता :- श्रीयदुनाथजी गुसाईंजी के छठे लालजी तथा "वल्लभ दिग्विजय' के रचयिता हैं। चैत्र शुक्ला ९ (राम नवमीं)
विशेषता :- आज राजभोग में फूल की मंडनी आती है तथा श्रीवालकृष्णजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है। चैत्र शूक्ला १५ ( महारास समाप्ति)
विशेषता :- श्रीमद्भागवतानुसार आज के दिन छः मास की रात्रि पूर्ण हुई। अतः महारास की पूर्णता के उपलक्ष्य में यह अंतिम श्रृँगार श्रीकृष्णस्वरुप श्रीनाथजी को धराया जाता है। वैशाख कृष्णा १० (श्रीगोवर्धनलालजी कृत पाँच स्वरुपों का उत्सव)
विशेषता :- आज के दिन श्रीगोवर्धनलालजी महाराज ने पाँच स्वरुप श्रीजी में पधरा कर छप्पन भोग किया था जिसमें श्री विट्ठलनाथजी, श्रीद्वारिकानाथ जी और श्रीमथुरानाथजी पधारे थे। वैशाख कृष्णा ११ (श्री महाप्रभुजी का उत्सव)
विशेषता :- आज ही के दिन महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी का प्राकट्य हुआ था। आज डोलतिवारी में चंदन का काम का बंगला आता है। मध्याह्यन में मणिकोठे में प्रभु हिंडौला शैय्या पर पौढ़ते हैं। यह आज से शुरु होकर जन्माष्टमी तक रहती है। वैशाख कृष्णा १२
विशेषताऐं :- आज के दिन ही आचार्य श्रीवल्लभ को माता ने अंक में लेकर स्तनपान कराया था। वैशाख शुक्ला ३ (अक्षय तृतीया)
विशेषता :- आज से सारे मंदिर में खस के पर्दे लग जाते हैं और निर्मल जल का छिड़काव शुरु हो जाता है। राजभोग के समय श्रीनाथ-प्रभु के वक्षस्थल पर श्रीहस्त पर तथा चरणारविन्द में चंदन धराया जाता है। शीतल सामग्री का भोग आता है। आज के दिन ही श्रीपरशुरामजी का प्राकट्योत्सव माना जाता है। वैशाख शुक्ला १४ (नृसिंह जयन्ती)
विशेषता: - आज संध्या आरती के पश्चात् श्रीनृसिंह भगवान का जन्म होता है। उस वक्त श्रीशालग्रामजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है। ज्येष्ठ और आषाढ़ के महीने में फूलों के आभरण और फूलों के वस्रादि के श्रृँगार होते हैं। जैसा श्रृँगार प्रातःकाल होता है वैसा ही फूल निर्मित श्रृँगार संध्या भोग आरती में भगवान को धराया जाता है। पाँच अभ्यंग होते हैं। ज्येष्ठ कृष्णा २ (श्रीदाउजी महाराज कृत चार स्वरुप का उत्सव)
विशेषता :- सर्वप्रथम आज के दिन ही श्रीमथुरानाथजी, श्री विट्ठलनाथ जी तथा श्रीगोकुलनाथजी नाथद्वारा पधारे थे। ज्येष्ठ कृष्णा १० (यमुना दशमी)
विशेषता :- राजभोग पश्चात् डोलतिवारी में ध्रुवबारी के नीचे सिंहासन तथा खण्डपाट आता है। मणिकोठा और डोलतिवारी में जल भरा जाता है। अनेक बालक उसमें जल विहार करते हैं। ज्येष्ठ शुक्ला ५ (नाव का मनोरथ)
विशेषता :- राजभोग अनन्तर डोलतिवारी तथा आधे रतन चौक में जल भरा जाता है। बड़ी नाव सुसज्जित होकर श्रीमदनमोहनजी उसमें बिराजते हैं। तिलकायतश्री भगवान् को नाव द्वारा इधर-उधर विहार करवाते हैं। श्रीमदनमोहन जी के अन्दर पधारने के साथ ही जल छोड़ दिया जाता है। उस समय अनेक भावुक भक्त, महिलाएँ तथा बालक जल में किलोल करते हैं। ज्येष्ठ शुक्ला १० (गंगा-दशमी)
विशेषता :- आज के दिन वर्तमान तिलकयतश्री गादी बिराजे थे। राजभोग के बाद डोलतिवारी तथा मणिकोठे में जल भरा जाता है। ज्येष्ठ मास में उत्सवों के पूर्व, दिन में केसर, गुलाबजल व बरास मिश्रित जल से वस्र रंगे जाते हैं और उन्हीं वस्रों से प्रभु को वायु झली जाती है। ज्येष्ठ शुक्ला १४ (चतुर्दशी)
विशेषता :- आज के दिन श्रृँगार करके तिलकायतश्री अपने मुख्य सेवकों के साथ वनास नदी स्थित "चूआ' (श्रीजी के निजी जलाशय) से जल भरकर लाते हैं। इसके बाद दिन जल भरने की सेवा चालू रहती है। शयन के समय इस जल का अधिवासन होता है। ज्येष्ठ शुक्ला १५ (स्नान यात्रा)
विशेषता :- मंगला आरती के पश्चात् भगवान श्रीनाथजी सफेद धोती उपरणा धराते हैं। फिर तिलकायश्री के स्वजाति बन्धुओं के मन्त्रोच्चार के साथ प्रभु का अभिषेक होता है। आज के दिन प्रभु गोपीवल्लभ भोग में सवालाख आम अरोगते हैं। आषाढ़ कृष्णा १ (ति. श्री गोवर्धनलालजी महाराज कृत गादी उत्सव)
विशेषता :- आज ति. श्रीगोवर्धनलालजी महाराज गादी पर बिराजे थे। आज के दिन प्रभु आम की तवापूरी अरोगते हैं। आषाढ़ शुक्ला २ (रथयात्रा)
विशेषता: - आज भी गोपीवल्लभ में भगवान सवा लक्ष आम अरोगते हैं। भगवान के सम्मुख रजत-रथ रक्खा जाता है। आज के दिन से ही खस के पर्दे और पंखा हट जाता है तथा छिड़काव व फव्वारा बंद हो जाता है। आषाढ़ शुक्ला ३-४ (रथयात्रा का दूसरा दिन)
विशेषता :- वर्ष भर में यह एक ही श्रृँगार होता है जिसमें भगवान आड़बन्द पर कुलहे धारण करते हैं। आषाढ़ शूक्ला ६ (कसुंभा-छठ)
विशेषता :- आज महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य के पूज्य पिता श्रीलक्ष्मणभट्टजी का जन्म दिवस माना जाता है। श्रीविट्ठलनाथजी के घर से आने वाले श्रीगोविन्दजी का गादी उत्सव भी आज ही है। आज से रंगीन वस्र का इस्तेमाल शुरु हो जाता है। आषाढ़ शुक्ला ११ (एकादशी)
विशेषता :- आज भोग आरती में फूल की कली निर्मित मुकुट काछनी का अन्तिम श्रृँगार होता है। उस समय पिछवाई श्याम कला की धराई जाती है। आषाढ़ शुक्ला १४ (चतुर्दशी)
विशेषता :- आज भोग आरती में वनस्पतियों की वनमाला तथा गोवर्धन माला श्रीजी को अंगीकार कराई जाती है। आषाढ़ शुक्ला १५ (व्यास पूर्णिमा या आषाढ़ी)
विशेषता :- आज का दिन भगवान् वेदव्यास का प्रार्दुभाव दिवस माना जाता है। श्रीजी आज के दिन सामग्री में कचौरी विशेष रुप से अरोगते हैं अतः इस दिन को "कचौरी-पूनम' भी कहा गया है। उपर्युक्त वर्ष भर के महामहोत्सवों की वैभवपूर्ण सेवा देखकर परमैश्वर्य-शाली श्रीनाथजी के अलौकिक माहात्म्य का परिचय मिल जाता है। परिस्थितयों में बहुत तरह के बदलाव आ चुके हैं फिर भी श्रीजी की सेवा उसी परंपरा के अनुसार चल रही है। |
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