मेवाड़ में आधुनिक शिक्षा का उदय 20वीं सदी के प्रारंभ से ही हो गया था। प्रारंभ में उसके प्रगति की गति धीमी थी। धीरे-धीरे इसका विस्तार गांवों में भी होने लगा। इसकी तुलना यदि आज से करे तो संस्थाओं की संख्या नगण्य थी परन्तु ये प्रारम्भिक प्रयास सराहनीय थे। इनमें कुछ संस्थाएं आज अस्तित्व में नहीं है और कुछ संस्थाओं ने आज वृहत रूप ले लिया है। इनमें विद्याभवन अग्रगण्य संस्था है जिसकी स्थापना डा. मोहन सिंह मेहता ने की थी। 1904 में अंजुमन स्कूल (मदरसा) इसके अलावा 1905 ई. में वर्धमान कन्या विद्यालय, 1907-08 ई. में तैयविया बोहरा स्कूल, 1915 में बीजोलिया में विद्या प्रचारणी सभा, 1915 में उदयपुर में प्रताप सभा, 1916 में राजस्थान महिला विद्यालय, 1919 में जवाहर जैन शिक्षण संस्थान, माधव स्स्कांत विद्यालय (अस्थल) 1928 में कांकरोली में विद्या विभाग,1929 में चित्तौड़ में गुरूकुल, 1931 में विद्याभवन व नोबल्स स्कू ल, 1933 में बालाश्रम, 1937 में राजस्थान विद्यापीठ व 1940 में कानोड़ में प्रतापोदय विद्यालय (वर्तमान में जवाहर विद्यापीठ) आदि शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हुई।
विद्याभवन के संस्थापक डा. मोहन सिंह जी मेहता का परिवार मेवाड़ रियासत में महत्वपूर्ण था। इनके पूर्वज रामसिंह मेहता मेवाड़ राज्य में प्रधान थे। उनके पुत्र जालिम सिंह भी मेवाड़ सरकार में बड़े पदों पर रहे। जालिम सिंह की तरह ही उनका पुत्र अक्षय सिंह जाहजपुर जिले का हाकिम रहा। इनके दो पुत्र हुए- जीवन सिंह और जसवन्त सिंह। जीवन सिंह के तीन पुत्र हुए- तेजसिंह, मोहनसिंह और चन्द्रसिंह । मोहन सिंह का जन्म 20 अप्रेल 1895 में भीलवाड़ा में हुआ। मोहन सिंह बचपन से ही कुशाग्र था। छः वर्ष की अवस्था में ही उसकी कुशाग्रता क ाð देखते हुए उसे अजमेर में डी.ए. वी. हाई स्कूल में दाखिल कराया । उस समय उदयपुर में शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं थी। अवकाश के समय वह उदयपुर आ जाया करता था जहां उनके चाचा जसवन्त सिंह इसकी देखभाल करते थे। (डा. मोहन सिंह मेहता-अब्दुल अहद पृ. 30-36)
सन् 1912 में मोहन सिंह ने हाई स्कूल की परीक्षा डी.ए.वी से तथा इन्टरमीडियेट की परीक्षा सन् 1914 में राजकीय महाविद्यालय अजमेर से उर्त्तीण की। यहां से उच्च शिक्षा के लिये उसे आगरा जाना पड़ा जहां से उसने सन् 1916 में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की। आगे के अध्ययन के लिये उसे इलाहबाद जाना पड़ा। (वही पृ. 39)
इलाहबाद में उनका सम्पर्क रवीन्द्रनाथ टैगोर से आया था। उनकेजीवन से उसे बड़ी प्रेरणा मिली। यही पर ही उसका सम्पर्क स्काउट से आया। 1918 के स्काउट के शिविर में उसे बेडन पावेल के पुस्तकों के अध्ययन का सुअवसर प्राप्त हुआ। इसी स्काउट के कार्यक्रम के माध्यम से आपका सम्पर्क पं. श्रीराम वाजपेयी, प. हृदयनाथ कुजख् व प. मदन मोहन मालवीय से आया। सन् 1918 में मोहन सिंह ने एम.ए. अर्थशात्र और एल.एल बी. की डिग्री हासिल की। उन दिनों एक ही वर्ष में दो परीक्षाएं दी जा सकती थी। (वही 39-40)
सन् 1920 में सेवा समिति स्काउट एसोसियेशन में आप कमीशन नियुक्त किये गये। इस समिति में प्रारंभ में तो बड़ा उत्साह रहा पर धीरे-धीरे इस समिति से जुड़े लोगों में जोश ठण्डा पड़ता चला गया । केवल पं. मदन मोहन मालवीय और मोहन सिंह जी मेहता ही इस समिति के शुभचिंतक के रूप में बचे रहे । अपने चाचा के पत्र आने पर वे उदयपुर चले आये पर इस समिति की गतिविधियों से वे अगले तीन वर्ष तक जुड़े रहे। (वही पृ 43-44)
उदयपुर आने पर मेवाड़ सरकार ने इनकी योग्यता को देखते हुए इन्हें कुम्भलगढ़ का हाकिम बना दिया । बाद में उन्हें उदयपुर बुलाकर एक अग्रेज अधिकारी के अन्तर्गत भूमि बदोबस्त विभाग में लगा दिया। सन् 1922 में उन्हें जगतसिंह के रूप में पुत्ररत्न प्राप्त हुआ पर बेटे को माता का सुख लिखा न था। सन् 1924 में टीबी रोग के कारण उनकी पत्नी का देहावासन हो गया । उस समय उनकी आयु मात्र 29 वर्ष की थी। घर वालों ने उन्हें दूसरा विवाह करते का प्रस्ताव रखा पर उन्होंने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। इस निर्णय को ध्यान में रखकर उन्होंने अपने पुत्र के लालन-पालन और उसके शिक्षा की दृष्टि से पिता का फर्ज तो निभाया ही, साथ ही बच्चे के परवरिश में मां की कमी का भी एहसास नहीं होने दिया। उनकी सारी व्यवस्था कर वे इगलैण्ड चले गये । उदयपुर में स्काउट का काम मन्द न पड़ जाय इसकी भी व्यवस्था करके गये । (वही पृ. 48-49)
वे इंगलैण्ड में ढाई वर्ष तक रहे वहां बेरेस्ट्री के अध्ययन के साथ-साथ डा. बर्न के मार्गदर्शन में आपने अर्थशात्र में पी. एच. डी. का कार्य पूर्ण किया। इस अन्तराल में आपने डेनमार्क के फॉक हाई स्कूल का अवलोकन भी किया । इंग्लैण्ड में रहते हुए आपने केम्ब्रिज व ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से भी सेटलमेण्ट के बारे में विशेष जानकारी ली । यहीं के अनुभव के आधार पर डा. मेहता ने उदयपुर में सेवा मन्दिर की स्थापना की । (वही. पृ. 49)
सन् 1928 में अपना अध्ययन समाप्त कर डा. मेहता उदयपुर लौट आये । उनके यहाँ आ जाने पर सरकार ने उन्हें पुनः रेवेन्यू कमिश्नर के पद पर नियुक्ति दे दी है । 35 वर्ष तक आते-आते उनका सम्पर्क विश्व की विभूतियों से हो गया । सन् 1930 तक उन्होंने मेवाड़ की शिक्षा का अध्ययन किया तो मेवाड़ में उन्होंने शिक्षा की दृष्टि से दुर्दशा देखी । उनके सतत चिन्तन का परिणाम था कि 21 जुलाई 1930 विद्याभवन की स्थापना की । उस समय यह विद्यालय किराये के भवन में (वर्तमान में उस भवन में आर.एन.टी. मेडिकल कालेज के अधीक्षक निवास करते है) चलता था। बाद में कठिन परिश्रम से नीमच माता की तलहटी में चार एकड़ भूभाग लिया।
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