शनिवार, 20 जून 2009

इतिहास मर्मज्ञ डा. गोपीनाथ शर्मा

डी.िलट की उपाधि ग्रहण करने पर राजस्थान विश्वविद्यालय ने डा. गोपीनाथ शर्मा को जयपुर में रीडर के पद के लिये चयनित किया। यहां उन्होंने राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस की स्थापना की जिसका प्रथम अधिवेशन जोधपुर में हुआ। इसमें इतिहासविद् डा. मथुरालाल शर्मा, डा. दशरथ शर्मा, उपकुलपति डा. पाण्डे, डा. खडगावत (पुरा लेखाधिकारी) तथा डा. गोपीनाथ शर्मा सम्मिलित हुए। इसमें डा. गोपीनाथ शर्मा को सचिव चुना गया जिसे उन्होंने चार वर्ष तक निभाया अजमेर के अधिवेशन में उन्हें अध्यक्ष चुना गया। इस प्रकार से उनके प्रयासों से यह इतिहास कांग्रेस फलने फूलने लगी।
रीडर के पद पर कार्य करते हुए लगा कि उनकी योग्यता के आधार पर उन्हें रीडर नहीं प्रोफेसर होना चाहिये अतः एक प्रार्थना पत्र उन्होंने उपकुलपति भटनागर के नाम लिखा। उपकुलपति भी उनके मत से सहमत थे अतः यह बात उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को लिखी। उन्होंने लिख भेजा कि किसी का किसी पद के लिये चयन `चयन प्रक्रिया' के माध्यम से किया जाता है। उपकुलपति उन्हें प्रोफेसर देखना चाहते थे अतः उन्होंने उनसे उनकी सारी रचनाएं मांगी। उन रचनाओं को उन्होंने दो भारत के तथा एक विदेश के विशेषज्ञों को टिप्पणी के लिये लिख भेजा। तीनों विशेषज्ञों ने एक राय दी कि जिनकी भी ये रचनाएं हैं उन्हें तो पहले से ही प्रोफेसर हो जाना चाहिये था। इस आधार पर उपकुलपति ने उनको प्रोफेसर के पद पर नियुक्त कर दिया।
उनके कार्यों को देखते हुए उन्हें 60 वर्ष में सेवानिवृत्त नहीं किया गया। उन्हें पहले तीन वर्ष के लिये और फिर दो वर्ष के लिये सेवा करने का अवसर प्रदान किया गया। ऐसाआदेश प्राप्त करने वाले ये प्रथम और अन्तिम व्यक्ति थे। 65 की अवस्था में जब वे सेवानिवृत्त होने लगे तो वि.िव. अनुदान आयोग ने इनकी योग्यता और अनुभव का शिक्षा जगत को लाभ देने के लिये एमरेटस प्रोफेसर के रूप में कार्य करने के आदेश दिये। इस प्रकार प्रत्यक्ष रूप से 71 वर्ष तक अध्यापन से जुड़े रहे। बाद में विद्यालय ने इन्हें `राजस्थान स्टडी सेन्टर' के मानद निदेशक के रूप में नियुक्त किया जिसे वे अन्तिम समय तक निभाते रहे। डा. मथुरालाल शर्मा के निधन के पश्चात इन्हें `इन्स्टीट्यूट आफ हिस्टोरीकल रिसर्च' में भी निदेशक बनाया गया। इस प्रकार भारत की कई संस्थाओं के साथ डा. गोपीनाथ जुड़े थे और अन्तिम सांस तक अपनी सेवाएं देते रहे।
आपने इतिहास से सम्बधित 25 ग्रंथों की रचना की। महाराणा फतहसिंह के `बहिडे' नामक पुस्तकों का सम्पादन किया, 100 से अधिक लेख भारत की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में छपे। लगभग 25 शोधकर्त्ता आपके मार्गदर्शन में `डाक्टरेट' कर चुके है। विभिन्न विश्व विद्यालयों से सम्बन्धित शोध छात्र-छात्राएं भी आपसे मार्गदर्शन लेते रहे। संसार के बड़े-बड़े विद्वानों ने मेवाड़ के इतिहास, संस्कृति, सामाजिक जीवन, कला आदि का मार्गदर्शन प्राप्त किया। अपनी उत्कृष्ट सेवाओं के लिये आपको कई संस्थाओं ने आपका सम्मान किया। इन्हें कुम्भा पुरस्कार, कविराज श्यामलदास पुरस्कार, नाहर सम्मान पुरस्कार आदि से सम्मानित किया गया। सन् 1982 में भारत सरकार के दिल्ली मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल, एन.सी.सी. द्वारा पदक प्रदान किया गया।

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