मेवाड़ के दर्शनीय स्थल
मांडलगढ़
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मांडलगढ़ की ऐतिहासिकता किले-परिसर की प्रमुख संरचनाएँ
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मांडलगढ़ का किला उदयपुर से १०० मील उत्तर-पूर्व में स्थित है। यह एक ऊँची पहाड़ी के अग्र भाग पर बनाया गया है। उसके चारों ओर अनुमानतः आधे मील लंबाई का बुर्जों� सहित कोट बना हुआ है। वि. सं.१४८५ में बने एक शिलालेख में ये पंक्तियाँ मिली हैं।
इस अभिलेख में इस किले को मंडलाकृतिगढ़ से संबोधित किया गया है। संभवतः इसकी आकृति मंडलाकार होने के कारण इसका नाम कालांतर में मण्डलगढ़ (मांडलगढ़) हो गया। समुद्रतल से इसकी ऊँचाई १८५० फुट है। किले के उत्तर की तरफ, आधी मील से भी कम दूरी पर एक दूसरी पहाड़ी (नकटी का चौड़, बीजासण) है, जो सुरक्षा की दृष्टि से किले के लिए उपयुक्त नहीं थी। इस किले के निर्माणकर्त्ता तथा निर्माणकाल के संबंध में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। इस संबंध में एक जनश्रुति तो यह है कि एक मांडिया नाम के भील को बकरी चराते समय पारस पत्थर मिला। उसने उस पत्थर पर अपना तीर घिसा, जिससे वह स्वर्ण बन गया। यह देखकर वह उस पत्थर को चांनणा नामक गू के पास ले गया, जो वहीं पशु चरा रहा था। उसने कहा कि इस पत्थर पर घिसने से उसका तीर खराब हो गया। चांनणा इस पत्थर की करामात समझ गया। उसने मांडिया से वह पत्थर ले लिया और उसकी मदद से धना हो जाने के बाद मांडिया के नाम पर मांडलगढ़ नामक किले का निर्माण करवाया। मांडलगढ़ की ऐतिहासिकता
किले- परिसर की प्रमुख संरचनाएँ
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