मेवाड़ में कुलीन प्रजातंत्र द्वारा सामुदायिक व्यवस्था बनाये रखने के लिए निम्न पंचायतों की विशेष भूमिका रही है-- १. जाति पंचायत २. ग्राम पंचायत तथा ३. चौखला पंचायत १. जाति पंचायत प्रत्येक बस्तियों में जातियों की अपनी- अपनी पंचायते होती थी। यह जातिगत कुल अथवा परिवार- समूह के प्रमुख सदस्यों का सामाजिक संगठन होता था, जिसमें उस जाति विशेष के सभी परिवारों के मुखिया औपचारिक सदस्य माने जाते थे। पंचायतों की बैठक का प्रायः कोई नियत स्थान नहीं होता था। वे ज्यादातर मंदिरों के आसपास खुले स्थानों में या सार्वजनिक जगहों पर की जाती थी। इस तरह की पंचायतें परंपरा, रुढियों, लोकाचारों, विश्वासों एवं जाति से जुड़ी सामाजिक - आर्थिक जीवन की प्रक्रियाओं पर लोक- कल्याणकारी नियंत्रण रखती थी। विवाह संबंधी झगड़े, व्याभिचारों के आरोप, पारिवारिक कटुता तथा जातिगत अशिष्टताओं की जाँच में इनका विशेष योगदान होता था। दण्ड के रुप में प्रायश्चित, क्षमा - याचना, आर्थिक रुप से दण्डित करना तथा धार्मिक यात्रा साधारण दण्ड माने जाते थे। जाति से भदर (बहिष्कृत ) करना कठोर दंड थे। निम्न जातियों, हरिजन तथा आदिवासियों में शारीरिक दण्ड का भी प्रचलन था। यह स्वजाति सामुदायिक भावना को बनाये रखने के साथ- साथ दूसरी जाति के सदस्यों तथा स्वजाति के सदस्यों के मध्य विवादों को सुनने, राज्यादेशों का जाति में पालन करवाने तथा राज्य व्यवस्था को जाति की ओर से परामर्श देने का कार्य करती थी। २. ग्राम पंचायत प्रजातांत्रिक न्याय- व्यवस्था बनाये रखने में ग्राम- पंचायतों का विशेष योगदान था। इस तरह के सामुदायिक संगठन नगरों की अपेक्षा गाँवों में अधिक प्रभावी रुप से कार्य करते थे। राज्य के कर्मचारी (पटेल, पटवारी ), नगर में नगर सेठ तथा नगर के प्रमुख चोवटिया इस पंचायतों का राज्य- प्रतिनिधित्व करते थे, वहीं जाति- पंचायतों का जन- प्रतिनिधि इसके सदस्य होते थे। पंचायत की बैठक का स्थान चोरा, हथाई एवं पंचायती नोहरा कहलाता था। इन पंचायतों का कार्य ग्राम्य- विवादों की जाँच एवं निर्णय करना होता था। राज्य की ओर से निर्णीत जनकल्याणकारी कार्य इसी के माध्यम से होता था। इन "पंचायती कार्यों' में बस्तियों के लोग पारस्परिक सहयोग करते थे। कुएं खुदवाना, तालाब तथा मंदिर बनवाने, जैसे सार्वजनिक कार्यों का निर्णय यही पंचायत लेती थी। साथ- ही- साथ यह राज्य को सामाजिक- राजनीतिक नीति में परामर्श देने का कार्य भी करती थी। ३. चौखला पंचायत चौखला पंचायत एक से अधिक गाँवों के अंतर्विवाद एवं व्यवस्थापन के कार्य देखने के लिए उत्तरदायी होता था। परगनों के चोवटिया (कामदार, फौजदार, नगर- सेठ तथा राज्य के सामंत ) तथा उस क्षेत्र विशेष में पड़ने वाले ग्राम- पंचायतों के विशिष्ट प्रतिनिधि इस पंचायत के सदस्य माने जाते थे। चौखला पंचायत भी दीवानी तथा फौजदारी दोनों तरह के मुकदमें सुनने तथा निर्णय देने का कार्य करती थी। साथ- ही- साथ यह बस्तियों की व्यवस्था बनाये रखने, लोक कल्याणकारी कार्यों का संपादन तथा प्रशासनिक व्यवस्था बनाये रखने में राज्य को सहयोग प्रदान करती थी। |
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