शनिवार, 20 जून 2009

पं. जनार्दन राय नागर

सन् 1957 में जन्नुभाई मावली विधानसभा से विधायक के रूप में चुने गये। राजनीति उन्हें विधानसभा तक तो ले गई पर सत्ता-लोलुपता उन्हें विश्रंëखल न कर सकी। जो स्थायी लक्ष्य, मूल्य, प्राथमिकताएं उनके मन में थी, उनसे वे भटके नहीं। यही कारण था कि उन्होंने राजस्थान विद्यापीठ को ही हर समय समुन्नत करने का प्राणपण प्रयत्न किया और उसमें वे सफल भी रहे। (पं. जनार्दन राय नागर-स्मृति ग्रंथ - पृ.22)
विधायक के रूप में आपने दो महत्वपूर्ण कार्य किये-1. राजस्थान साहित्य अकादमी का ब्लू-िप्रन्ट 2. समाज शिक्षा विधयेक को विधानसभा में पारित करवाना, साहित्यिक अभिरूचि होने के कारण राजस्थान सरकार ने इन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी का अध्यक्ष बनाया जिसका मुख्यालय `उदयपुर' रखा गया। वे इस पद पर सन् 1972 तक रहे। अध्यक्ष रहते हुए आपने अकादमी को सरकारी कार्यालय नहीं बनने दिया और यह प्रयत्न किया कि राज्य में साहित्यिक वातावरण बने व राज्य में साहित्यकारों का वर्चस्व बढ़े। आपने अपने प्रभाव से सरकारी प्रौढ़ शिक्षा के कार्य में गति प्रदान कराई। इस प्रकार विधानसभा और अकादमी में रहते हुए आपने शिक्षा व साहित्य के उन्नयन को नहीं छोड़ा। (वही- पृ. 226)
यह सब काम करते रहने पर भी उनके जीवन का लक्ष्य तो राजस्थान विद्यापीठ ही था। उनका एक सपना था कि इस विद्यापीठ को एक विश्वविद्यालय का स्वरूप दिया जाय। इसके लिये आपने विद्यापीठ को विभिन्न विषयों और संकायों से परिपूर्ण किया। स्कूल और कॉलेज के अलावा `उदयपुर स्कूल्स आफ शोशल वर्क्स', डबोक में शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, अजमेर में विजयसिंह पथिक साहित्यक महाविद्यालय, मोलीसर (डीडवाना) में तकनीकी संस्थान तथा कोटा में शोध संस्थान की स्थापना की। कालान्तर में दा.सा. हरिभाऊ उपाध्याय द्वारा हटूंडी में संचालित सभी संस्थाएं भी राजस्थान विद्यापीठ में समाहित कर दी गई। (वही-ही पृ. 39)
जन्नुभाई तो जीवन भर गांव-गांव, ढाणी-ढाणी तक मां सरस्वती के प्रसाद को वितरण करने में लगे थे। उनके कार्यकर्ता भी उनसे प्रेरणा लेते हुए हर कार्य को पूर्ण निष्ठा से कर रहे थे। जन्नुभाई की कर्त्तव्यनिष्ठा और त्याग को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पहिचाना और 1987 को राजस्थान विद्यापीठ को सर्वोच्च जांच के पश्चात् डीम्ड यूनिवर्सिटी की मान्यता मिल गई। सपना पूरा हुआ- उस समय उनकी आंखों में प्रसन्नता के आंसू छलक आये थे। जीवन पर्यन्त शारीरिक असुविधाओं को नकारते हुए वे मां सरस्वती की सेवा करते रहे। जिस प्रकार भगीरथ तपस्या के बल पर गंगा को शिवजी की जटाओं से निकालकर हिमालय से अवतरित करा पाये, ठीक उसी प्रकार राजस्थान के पिछड़े हुए जनजाति क्षेत्र में शिक्षा की गंगा बहाने में वे सफल रहे। वे जीवन के अन्तिम क्षण तक विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। उन्होंने 15 अगस्त सन् 1997 को रात्रि में यह नश्वर देह छोड़ा। (वही- पृ. 40)
पं. जनार्दन राय नागर मूलतः साहित्यकार थे। वे स्वयं भी यही कहा करते थे ``ईमानदारी की बात करता हूं मैं तो केवल एक साहित्यकार ही अपने अन्तर में खोज पाता हूं।'' बाल्यकाल से जो उनका लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ वह जीवन पर्यन्त चलता रहा। साहित्य की सभी विद्याओं में उन्होंने अपनी रचनाएं लिखी है उनमें चार नाटक, दो उपन्यास, 100 से अधिक कहानियां, गद्य गीत, बाल साहित्य और शिक्षा पर निबन्ध प्रमुख है। ये तो प्रकाशित हो गये है इसके अतिरिक्त अप्रकाशित साहित्य भी बड़ी मात्रा में है। इसके अतिरिक्त पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उनका बाल्यकाल से रूझान था। (वही-पृ. 222)
उक्त साहित्य के अतिरिक्त आपकी दो अमर कृतियां राम राज्य और जगद् गुरू शंकराचार्य है। इसमें राम राज्य उपन्यास दो खण्डों में तथा नाटक तीन खण्डों में लिखा है। जगद् गुरू शंकराचार्य नामक उपन्यास लगभग साढ़े पांच हजार पृष्ठों में कुल दस खण्डों में लिखा गया ऐतिहासिक उपन्यास है जो आचार्य शंकर के जीवन पर आधारित है। इसमें ऐतिहासिक सत्य के परिपार्श्व में मानवीय और कलात्मक सत्य अपने आप उभर आये हैं। इसी साहित्य की सेवा के उपलक्ष्य में आपके विभिन्न संस्थाओं ने इन्हें सम्मानित कर समादृत किया है। इसमें प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में ``नेहरू साक्षरता पुरस्कार व हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा- साहित्य वाचस्पति'' की मानद उपाधि से आपको अलंकृत किया गया। (वही-पृ. 323)
जन्नू भाई ऐसे कर्मयोगी थे जिनके हर कार्य में पवित्रता और पूर्णता थी, वाणी के एक-एक शब्द में दर्शन आस्था और विश्वास की गहरी छाप प्रकट होती थी। उन्हें हम किस रूप में पहिचाने- शैक्षिक संस्था के संस्थापक, एक राजनीतिज्ञ और समाजसेवी, प्रौढ़ शिक्षा में कार्यरत एक कार्यकर्ता, एक साहित्यकार, उपन्यासकार, कवि अथवा दर्शनिक। ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी युगपुरूष को सादर नमन। (क्रमशः)

( दिनांक 5 अप्रेल 2009 से नया धारावाहिक ``मेवाड़ की धरोहर'' प्रारम्भ किया जा रहा है जिसमें मेवाड़ की ऐतिहासिक, प्राकृतिक, सांस्कृतिक धरोहर तथा यहां के आस्था के केन्द्र, दुर्ग, हवेलियां, महल, वास्तु, स्थापत्य व विविधि कलाओं के बारे में विवेचन किया जायेगा। यहां की लोक संस्कृति के बारे में भी जानकारियां दी जायगी

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