सोमवार, 22 जून 2009

मेवाड़ की ग्राम तथा बस्तियों में गृह- सज्जा एवं सामान Village settlements in the House of Mewar, and - the goods and equipment



गृह- सज्जा तथा घरेलू सामान मेवाड़ी समाज की आर्थिक विषमता से प्रभावित थे। जहाँ गाँव के साधारण किसान व दस्तकारों की आय सीमित थी, वहीं ग्राम्य नगरों में रहने वाले अभिजात्य वर्ग के लोग शहरी चमक- दमक से प्रभावित थे। उनके उपभोग की वस्तुएँ भी विलासितापूर्ण होती थी। तुलनात्मक दृष्टि से मकानों की साज- सज्जा तथा उपयोगी सामानों के मामले में वृहत्त- ग्राम व ग्राम्य- नगर की स्थिति ग्राम्य- घरों से बहुत अच्छी थी।

गाँवों के कृषक तथा दस्तकार ओढ़ने बिछाने के लिए घास की पयाल तथा चिथड़ों की गुदड़ी का प्रयोग करते थे। घरेलू साज- सामानों में पत्थर- मिट्टी और बाँस- लकड़ी का प्रयोग प्रचुरता से किया जाता था। सोने में खाटेले (ऊँची चारपाई) का उपयोग बहुत प्रचलित था। उनके खाना बनाने व पानी भरने के बर्तन काँसे व मिट्टी के होते थे। प्रत्येक घर में आटा के लिए पत्थर की चक्की, मसाला पीसने के लिए खरल, धान कूटने के लिए ओखली- मूसल, अनाजों की सफाई के लिए सूप, रोटी रखने के लिए चाचरी, लकड़ी की परात और पेटी, दीपक टांगने के लिए आकाश्मा तथा मिट्टी का चुल्हा होता था। थाली, कटोरे व परात पत्थर के भी बनाये जाते थे। बाँस का उपयोग टोकरियाँ, पिटारे व कर्जिंन्डयों का प्रयोग होता था। सामान लाने- ले जाने में कोथलियों का प्रयोग होता था।

ग्राम्य- नगर के बस्ती- घरों में भी मिट्टी व लकड़ी की बनी वस्तुओं का प्रयोग किया जाता था, लेकित संपन्न वर्ग सोने, चाँदी, पीतल व तांबे के बरतनों का प्रयोग करते थे। वे शयनकक्ष में रेशम के गद्दे व तकिये तथा बैठक में गादी- मोड़े का भी उपयोग करते थे। सज्जा के लिए कमरों में साटन के पर्दे, काँच, कालीन, हिण्डोले, मेज- कुर्सियों, फूलदार, मोमबत्तियों, शमादान, आवनूस तथा सागवान काष्ठ के बने सामानों का प्रयोग होता था।

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